हिन्दू धर्म परंपराओं में दण्डाधिकारी माने गए शनिदेव का चरित्र भी असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता है। अगर आप शनिदेव को प्रसन्न कंरना चाहते हैं तो कुछ बिलकुल सरल और उतम उपाय हैं! साथ ही ज्योतिष व तंत्र शास्त्र में भी शनिदेव को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं, उनमें से कुछ प्राचीन उपाय आज भी बहुत कारगर हैं।
शनिवार का व्रत और शनिदेव पूजन किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की पूजा करनी चाहिए । शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही शनिवार को शनि पूजा व उपासना बहुत ही शुभ मानी गई है।
हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है।
शनि का गोचर एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे मंद है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है। इसके अलावा शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है।
वहीं यह भी माना जाता है कि अगर किसी मनुष्य पर शनि की कृपा हो गई तो समझों वह मनुष्य रातों रात फक़ीर से राजा बन जाता है। हिन्दू धर्म परंपराओं में दण्डाधिकारी माने गए शनिदेव का चरित्र भी असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता है।
पुराणों में शनि देव को खुश करने वाले कई उपायों का वर्णन किया गया है। शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही शनिवार को शनि पूजा व उपासना बहुत ही शुभ मानी गई है। यह दु:ख, कलह, असफलता से दूर कर सौभाग्य, सफलता व सुख लाती है।
ये है उपाय
1. सरसों के तेल में लोहे की कील डालकर दान करें और पीपल की जड़ में तेल चढ़ाएं। इससे शनिदेव क्षण ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं।
2. कांसे की कटोरी में तेल भरकर उसमें अपनी परछाई देखें और यह तेल किसी को दान कर दे। शनिदेव को प्रसन्न करने का यह बहुत ही अचूक व पुराना उपाय है।
3. तेल का पराठा बनाकर उस पर कोई मीठा पदार्थ रखकर गाय के बछड़े को खिलाएं, ये छोटा और बहुत ही कारगर उपाय है।
4. किसी भी शनिवार या शनिश्चरी अमावस्या के दिन सूर्यास्त के समय जो भोजन बने उसे पत्तल में लेकर उस पर काले तिल डालकर पीपल की पूजा करें, नैवेद्य लगाएं और यह भोजन काली गाय या काले कुत्ते को खिला दें।