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अब स्वर्ण आभा से दमकेगा काशी विश्वनाथ मंदिर

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गर्भगृह, शिखर व बाहरी दीवारों पर स्वर्ण पत्तर मढ़ने की तैयारी 

   वाराणसी  : काशी विश्वनाथ का मंदिर अब नीचे से ऊपर तक स्वर्ण आभा से दमकता नजर आएगा। बाबा श्री काशी विश्वनाथ के शिखर के बाद अब गर्भगृह की दीवारें स्वर्ण मंडित होंगी। वहीं बैकुंठ महादेव के शिखर को भी सोने के पत्तरों से मढ़वाया जाएगा। घिसने से कमजोर हो चुके बाबा के मूल स्वर्ण शिखर पर नए सिरे से गोल्डन कोटिंग कराई जाएगी।
     श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह, शिखर और बाहरी दीवारों पर स्वर्ण पत्तर मढ़ने की तैयारी की जा रही है। देश भर के कुछ दानदाताओं ने मंदिर को स्वर्ण मंडित कराने के लिए अपना प्रस्ताव दिया है।
6 वर्ष पूर्व बनी थी योजना
     मंदिर प्रशासन दानदाताओं के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। 6 साल पहले बनी इस योजना पर 42 करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया गया था और तब मंजूरी भी मिल गई थी। जब शासन ने स्वर्ण शिखर और दीवारों पर अतिरिक्त भार सहने की क्षमता की रिपोर्ट मांगी तो बीएचयू आईआईटी ने अपनी रिपोर्ट में अतिरिक्त भार सहने योग्य नहीं माना था।
    वहीं सीबीआरआई ने भार सहने की क्षमता के अनुरूप बताया था। यही कारण था कि यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी और शासन ने खारिज कर दिया था। अब पुन: इसकी तैयारी शुरू हो गई है। इस बार में सीईओ सुनील वर्मा ने कहा कि स्वर्ण मंडित कराने के लिए कुछ दानदाताओं का प्रस्ताव आया है। फिलहाल इस पर विचार किया जा रहा है। 
1780 में महाराज रणजीत सिंह ने किया था सोना दान
    काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। शाह सुजाउद्दौला से युद्ध में जीते गए सोने के एक तिहाई भाग को पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने बाबा के दरबार में अर्पित किया था।
    2016 में न्यास परिषद ने मंदिर परिसर के अविमुक्तेश्वर, तारकेश्वर और रानी भवानी के भुवनेश्वर मंदिर के शिखरों को स्वर्ण मंडित कराने का प्रस्ताव दिया था। तब बेंगलूरू की स्मार्ट क्रिएशन कंपनी ने 42 करोड़ रुपये में इस योजना को साकार करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन स्वर्ण पत्तर चढ़ाने से पहले मंदिर के शिखर और दीवारों की भार सहने करने की क्षमता की रिपोर्ट मांगी गई थी।
   BHU आईआईटी के विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में इसे अतिरिक्त भार सहने के योग्य नहीं माना था लेकिन सीबीआरआई ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में स्वर्ण पत्तरों का भार सहने की क्षमता के अनुरूप बताया था।

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