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पंचक क्या है? पंचक में यदि मृत्यु हो तो उसका दोष निवारण का उपाय

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 गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है।
 
  पंचक पांच प्रकार के होते हैं: -


 रोग पंचक, राज पंचक, अग्नि पंचक, मृत्यु पंचक और चोर पंचक। 

  नाम से ही स्पष्ट होता है कि किस पंचक में क्या होगा। इसमें मृत्यु पंचक ही मृत्यु से संबंधित होता है।

 शास्त्र-कथन है-

'धनिष्ठ-पंचकं ग्रामे शद्भिषा-कुलपंचकम्।
पूर्वाभाद्रपदा-रथ्याः चोत्तरा गृहपंचकम्।
रेवती ग्रामबाह्यं च एतत् पंचक-लक्षणम्।।'
 
 आचार्यों के अनुसार धनिष्ठा से रेवती पर्यंत इन पांचों नक्षत्रों की क्रमशः पांच श्रेणियां हैं- 

 *ग्रामपंचक, कुलपंचक, रथ्यापंचक, गृहपंचक एवं ग्रामबाह्य पंचक। 

 ऐसी मान्यता है कि यदि धनिष्ठा में जन्म-मरण हो, तो उस गांव-नगर में पांच और जन्म-मरण होता है। शतभिषा में हो तो उसी कुल में, पूर्वा में हो तो उसी मुहल्ले-टोले में, उत्तरा में हो तो उसी घर में और रेवती में हो तो दूसरे गांव-नगर में पांच बच्चों का जन्म एवं पांच लोगों की मृत्यु संभव है। 

 मान्यतानुसार किसी नक्षत्र में किसी एक के जन्म से घर आदि में पांच बच्चों का जन्म तथा किसी एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर पांच लोगों की मृत्यु होती है। मरने का कोई समय नहीं होता। ऐसे में पांच लोगों का मरना कुछ हद तक संभव है, परंतु उत्तरा भाद्रपदा को गृहपंचक माना गया है और प्रश्न है कि किसी घर की पांच औरतें गर्भवती होंगी तभी तो पांच बच्चों का जन्म संभव है।
 
 पंचक में जन्म-मरण और पांच का सूचक है। जन्म खुशी है और गृह आदि में विभक्त इन नक्षत्रों के तथाकथित फल पांच गृहादि में होने वाले हैं, तो स्पष्ट है कि वहां विभिन्न प्रकार की खुशियां आ सकती हैं। पांच मृत्युओं का अभिप्राय देखें तो पांच गृहादि में रोग, कष्ट, दुःख आदि का आगम हो सकता है। कारण व्यथा, दुःख, भय, लज्जा, रोग, शोक, अपमान तथा मरण- मृत्यु के ये आठ भेद हैं। इसका मतलब यह कि जरूरी नहीं कि पांच की मृत्यु ही हो पांच को किसी प्रकार का कोई रोग, शोक या कष्ट हो सकता है।
 
 क्या होता है पंचक?--

आकाश को कुल 27 नक्षत्रों में बांटा गया है। इन 27 नक्षत्रों में अंतिम पांच नक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों के संयोग को पंचक कहा जाता है। इन पांच नक्षत्रों की युति यानी गठजोड़ अशुभ होता है। 'मुहूर्त चिंतामणि' अनुसार इन नक्षत्रों की युति में किसी की मृत्यु होने पर परिवार के अन्य सदस्यों को मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट सहना पड़ता है।
 
 
ज्योतिष के अंतर्गत कुंभ और मीन राशि के चंद्रमा के नक्षत्रों, अर्थात् धनिष्ठा के उत्तरार्द्ध, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा तथा रेवती- इन पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। धनिष्ठा के स्वामी मंगल, शतभिषा के स्वामी राहू, पूर्वाभाद्रपद के बृहस्पति, उत्तराभाद्रपद के शनि और रेवती के स्वामी बुध आदि से बनता है पंचक। शनिवार से शुरू हुआ पंचक सबसे ज्यादा घातक होता है। इसे मृत्यु पंचक कहा जाता है।

 पंचक का उपाय:-

 प्रेतस्य दाहं यमदिग्गमं त्यजेत् शय्या-वितानं गृह-गोपनादि च।+'-( मुहूर्त-चिंतामणि)
 
 पंचक में मरने वाले व्यक्ति की शांति के लिए गरुड़ पुराण में उपाय भी सुझाए गए हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य विद्वान पंडित जी की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि विधि अनुसार यह कार्य किया जाए तो संकट टल जाता है। दरअसल, पंडित जी के कहे अनुसार शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
 
 दूसरा यह कि गरुड़ पुराण अनुसार अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है। नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।

इसी प्रकार त्रिपुष्कर और भरणी नक्षनक्षत्र में  भी यही अनर्थ प्राप्त होता है---

धनिष्ठापञ्चके जीवोमृतोयदि काञ्चन।
त्रिपुष्करे याम्यभे वा कुलजान्मारयेद्ध्रुवम्।।

तत्रानिष्टविनाशनार्थं विधानं समुदीर्यते।
दर्भाणां प्रतिमाकार्या:पञ्चोर्णासूत्र वेष्टिता:!!

यवपिष्टेनानुलिप्तास्ताभि :सह शवंदहेत्।
प्रेतावाह:प्रेतसख:प्रेतप:प्रेतभूमिप:!।

प्रेत हर्ता पञ्चमस्तु नामान्येतानिच क्रमाता।
सूतकान्ते तत: पुत्र:कुर्याच्छान्तिक पौष्टिकम्।।

ऐसी स्थिति में अनिष्ट के निवारण केलिए कुशों की पांच प्रतिमा(पुत्तल)बनाकर सूत्र से वेष्टित कर जौ के आटे कीशपीठी से लेपित करके उन पुत्तलों के साथ शव दाह संस्कार करे।पुत्तलों के नाम क्रमशः  इस प्रकार हैं--
 प्रेतवाह ,प्रेतसखा, प्रेतप,प्रेतभूमिप तथा प्रेतहर्ता।

पुत्तलदाह का संकल्प --

ॐअद्य--पूर्वोच्चरितगुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्य तिथौ --इत्यादि --शर्माहं/ वर्माहं--गोत्रस्य /गोत्राया:प्रेतस्यप्रेताया:धनिष्ठादिपञ्चकजनितवंशानिष्टपरिहारार्थं पञ्चकविधिं करिष्ये।

इसके बाद पांचो पुत्तलों का पूजन करें--

पुत्तल पूजन- प्रेतवाहाय नमः, प्रेतसखाय नमः, प्रेतपाय नमः, , प्रेतभूमिपाय नमः, प्रेत हर्त्रे नमः ।।इमानि गन्धाक्षतपुष्पधूपदीपादि वस्तूनि युष्मभ्यं मया दीयन्ते युष्माकमुपतिष्ठन्ताम्।।
||  पूजन के बाद  पहले पुतले के शिरपर ,दूसरे के आखों पर ,तीसरे के बायीं कोष पर, चौथे के नाभि पर,और पांचवे पुतले के पैरों पर रखकर निम्न मंत्रों से घी की आहुति दें--प्रेतवाहाय स्वाहा, प्रेतसखाय स्वाहा, प्रेतपाय स्वाहा, प्रेतभूमिपाय स्वाहा और प्रेतहर्त्रे स्वाहा।
  इसके बाद शव दाह करें।

 विशेष--निर्णयसिंधु और धर्मसिंधु के अनुसार यदि मृत्यु पंचक से पूर्व हुई हो और दाह संस्कार पंचक मे होना हो तो पुत्तलों का विधान करे तब शांति की आवश्यकता नही है। इसके विपरीत कहीं पंचक मे मृत्यु हो गयी हो और दाह पंचक के बाद हुआ हो तो शांति कर्म करे तथा यदि पंचक मे मृत्यु  और दाह दोनों पंचक मे हो तो पुत्तल दाह और शांति  दोनो करें।यथा--

 नक्षत्रान्तरे मृतस्य पंचके दाहप्राप्तौ पुत्तलविधिरेव न शांतिकम्!
पंचकमृतस्याश्विन्यां दाह प्राप्तौ शांतिकमेव न पुत्तलविधि:!।

 पंचक में वर्जित कार्य:- 

'अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।
संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके।।'-मुहूर्त-चिंतामणि

 अर्थात:- पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।
 
धनिष्ठा पंचकं त्याज्यं तृणकाष्ठादिसंग्रहे।
त्याज्या दक्षिणदिग्यात्रा गृहाणां छादनं तथा।।
 
 शास्त्रों में पंचक के समय दक्षिण दिशा की यात्रा करना, लकड़ी का सामान खरीदना या बनवाना, खाट बुनना, घर की छत ढलवाना, चांदनी लगवाना, घर की लिपाई-पुताई (रंग-रोगन) करवाना आदि कायों को वर्जित बताया गया है। उक्त कार्य करने से धन हानि और घर में क्लेश होता है या किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न हो सकता है!!

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