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सामाजिक कू व्यवस्था का शिकार

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खोता बचपन-आज की भागम भाग जिंदगी में हर कोई हैरान ,परेशान है ।अनचाही भौतिकता के प्रति  अर्थ काम और पिपासा में आज के युवा लिप्त है।किसी के पास समय नही है हर कोई इस अंधी  दौर लगाकर दौड़ता जा रहा है।यधपि मंजिल का पता नही ,भौतिकता और विलासता को परम् सत्य मान कर आज के युवा औऱ पोर्ड दोनो समाज से बिल्कुल अलग ,थलग हो चुके है ।अपने बुजुर्गों से बात करना उन्हें अव्यवहारिक और दकियानूसी लगता है ।और बच्चों तो बिल्कुल मोबाइल गेम ,काटून, नेटवर्क के माया काल के जंजाल में उलझता ही जा रहा है। जबकि इन दोनों पीढ़ियों काम या व सेतु का युवा वर्ग का है ,जो कि बिल्कुल अंधी दौड़ में बंध चुके है ।जिससे समाजिक तानाबाना शीशे की तरह दरक रहा है , बुजुर्गो के पास बच्चों का बैठना उनका स्नेह और महत्व भरा भाव अब खिसशो और कहानियों में रह जायेगी ।जिसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे समाज को चुकाना होगा ,बच्चों का खेल ,कूद एक कैमरों में कैद हो कर मोबाइल ,और काटून नेट वर्क जुड़े रहना मानसिक बीमारी और अबसाद को जन्म दे रही है ,जबकि बच्चों का सही खेलकूद मैदान में हुआ करता था ।जिससे शारीरिक मानसिक तथा सामाजिक विकास होता था ।

The present younger generation is motivated in a negative direction The internet and technical devices are misused by our young people.Proper direction is needed for complete transformations in the society.

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