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बिहार में जातीय जनगणना एक सामाजिक अपराध है धर्मेन्द्र भारद्धाज उर्फ बौआ झा ,

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बिहार में जातीय जनगणना  एक सामाजिक अपराध है धर्मेन्द्र भारद्धाज उर्फ बौआ झा ।      
बिहार सरकार राज्य में बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, अपसंस्कृति और अपराध जैसे मुद्दों से निपटने के लिए सकारात्मक कार्य योजना बनाने के बजाय, समाज में भेद भाव बढ़ाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ कर मात्र राजनैतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए जातीय जनगणना करा  रही है बिहार सरकार ये मुख्य बातें बिहार भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य धर्मेन्द्र भारद्धाज उर्फ बौआ झा ने कहा ।  श्री झा ने कहा की जनगणना से आने वाले दिनों में जातियों में अपनी- अपनी आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग जोर पकड़ेगी।  रोजगार सृजन जैसे मूल मुद्दा से दूर हटकर बिहार वासी राजनेताओं के बहकावे में, जाति के नाम पर आपस में एक दुसरे के खून के प्यासे बनेंगे, और राजनेता अपना मतलब पूरा करेंगे। साथ साथ पूंजीपतियों का लूट तंत्र भी बेलगाम चलेगा। एक तरफ अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देकर जात पात समाप्त करने की बात की जा रही है, और वहीँ दूसरी तरफ जातीय जनगणना के माध्यम से जात पात को कानूनी मान्यता दी जा रही है, जो अंग्रेजों से भी ज्यादा गन्दी नीति को दर्शाता है। साथ साथ मानव- मानव एक हैं की, हमारे ऐतिहासिक बिहार प्रदेश की पवित्र और गौरवशाली संस्कृतिक विरासत और परंपरा जो  ऋषि-मुनियों के वसुधैव कुटुंबकम् के सिद्धांत पर आधारित है, को तार तार करने वाली है।

इस जातीय जनगणना कार्य में जो बिहार सरकार पांच सौ करोड़ रुपया खर्च करने जा रही है, उसे राज्य के  संसाधन, कृषि, खनिज,वन,श्रम,मेधा,जल, शिक्षा आदि तथा बैंक में जमा राशि आदि से शत प्रतिशत रोजगार सृजन कर आत्मनिर्भर बिहार कैसे बनेगा,इस पर कार्य करें।  सरकार बिहार में श्रम शक्ति की बहुलता को अभिशाप नहीं, वरदान के रूप में देखकर विकास की योजना बनाए। क्योंकि प्रकृति ने बिहार के धरती के सभी क्षेत्र के धूल कण में असीम क्षमता बिखेर कर दिया है। बस जरूरत है उसे सुनियोजित तरीके से व्यवस्थित करने की।
बिहार को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जातीय मुद्दे को परे रखकर यहाँ निवास करने वाली चार प्रमुख जनगोष्ठियों (मगही, भोजपुरी, अंगिका और मिथिला) को स्वतंत्र सामाजिक आर्थिक इकाई का वैधानिक दर्जा दिया जाय। ताकि ये सब ईकाई अपने अपने क्षेत्र का संसाधन जो कच्चे रुप में बाहर जा रहा है,उसे रोककर अपने यहाँ के श्रम शक्ति, मेधा शक्ति, बैंक में जमा रुपया एवं टैक्स के पैसे से अधिक से अधिक उद्योग एवं अन्य उपक्रम खड़ा कर शत प्रतिशत रोजगार सृजन कर बिहार प्रदेश को आत्मनिर्भर बना सके।   युवा नेता श्री झा ने कहा की 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद जब कर्नाटक , आंध्रप्रदेश और तमिलनाण्डू में आईटी पार्क लग रहे थे ,तब बिहार में चरवाहा विद्यालय खुल रहे थे |आज जब बेंगलुरु ,पुणे चेन्नई ,गुरुग्राम और हैदराबाद विश्व स्तर के शहरों में शुमार हो रहे हैं ,उस वक़्त बिहार सरकार अपने प्रदेश के लोगों से पूछ रही है की आपकी जाती क्या है...?

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