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प्रजातंत्र के मंदिर में लोकतंत्र की भ्रूण हत्या ,

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प्रजातंत्र के मंदिर में लोकतंत्र की भ्रूण हत्या !!

माफ़ करना मित्रों, #वेश्या का भी एक चरित्र होता है जो पैसा देता है वही उसका मित्र होता है, पर #नेताओं का तो कोई चरित्र ही नहीं होता, जब चाहा जनता को पान के बीड़े की तरह चबाया और थूक दिया और देश को चुनाव के चूल्हे में फूंक दिया !! .....@ शैल चतुर्वेदी ‘शैल’

किसी देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि आजादी के पचहत्तर साल बाद उस देश की जनता यह मानने पर मजबूर हो कि आज से अच्छा तो अंग्रेजों का राज था। तब न तो ऐसा भ्रष्टाचार था और न ही काम के लिए इस तरह की लेटलतीफी बरती जाती थी। आज हम जिस भ्रष्ट तंत्र में जीने को मजबूर हैं, उसकी जड़ों को हमारे राजनेताओं ने भरपूर सींचा है। यही वजह है कि नेताओं की कौम से आम आदमी घृणा करने लगा है, लेकिन उसकी मजबूरी यह है कि वह आखिर करे भी तो क्या? भ्रष्ट तंत्र की हर साख पर तो एक उल्लू बैठा है...अंजाम ए गुलिस्तां यही होना है।

हमारी युवा पीढ़ी ने तो शायद ही कभी विधायिकाओं को सभ्य और सुसंस्कृत तरीके से चलते देखा हो! इसीलिए उसके दिल में हमारी इन संवैधानिक संस्थाओं और इनके सदस्यों के प्रति सम्मान नहीं है। वह अपनी दैनंदिन प्रक्रियाओं में व्यस्त है। युवा पीढ़ी की दिलचस्पी भी राजनीति में नहीं दिखाई देती। सम्मान खोने के लिए सिर्फ और सिर्फ हमारे आज के दौर के नेता जिम्मेदार हैं।

#अब्राहम लिंकन ने भी एक बार कहा था कि ‘यदि राजनीतिज्ञ सत्ता पाने की जोड़तोड़ से विमुख हो जाएं तो उनके पास और कोई काम नहीं बचेगा।‘ एक डॉक्टर बनने के लिए चिकित्सा विज्ञान का, इंजीनियर बनने के लिए इंजीनियरिंग का और वकील बनने के लिए कानून का अध्ययन करना पड़ता है। लेकिन नेता बनने के लिए ऐसी किसी योग्यता की जरूरत नहीं पड़ती, बस, चुनाव जीतने की कला में पारंगत होना पड़ता है। 

कोई शख्स राजनीतिज्ञ तभी नहीं बन सकता जब वह पागल हो। इसे आप हास्यास्पद तो कह सकते हैं, मगर यह सच है कि आज राजनीति में दो ही किस्म के लोग सफल होते हैं। एक तो वे, जिनका कोई सिद्धान्त नहीं होता, लेकिन जो गजब के 'प्रतिभाशाली' होते हैं। दूसरे वे हैं, जिनमें कोई प्रतिभा तो नहीं होती, लेकिन अपने राजनीतिक आकाओं को खुश रखने के फन में वे माहिर होते हैं। यही उनका जीवन दर्शन और सिद्धान्त होता है। इसीलिए आज राजनीति में भले और साफ सुथरे लोगों की कोई जगह नहीं रह गई है। उन्हें ये लोग राजनीति में टिकने नहीं देंगे।

#विलियम शेक्सपियर ने कहा था- ‘राजनीतिज्ञ वह है जो ईश्वर को भी धोखा दे दे’। विलियम #एंडरसन ने एक बार लिखा था- राजनीतिक चुनावों में समाज के नेता नहीं चुने जाते हैं, बल्कि यह ऐसी कवायद है, जिसमें जनसमूह ऐसे लोगों को चुनते हैं जो अपना नेता न चुन सकने वाले दूसरे समूहों को लूटने में उनके मददगार बनें। 

राजनीति, सत्ता को चलाने का कौशल है। समाज हित में कार्य करने के लिए आदर्श की आवश्यकता होती है। इस गुण का समेकित नाम ही नैतिकता है। सामाजिक आदर्शो की प्राप्ति के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार के अनुकूल आचरण करना नैतिकता है, लेकिन वर्तमान में राजनीति, सत्ता को भोगने का कारण बन गई है जिससे चिंतन में विकृति आना शुरू हो गई है। सत्ता का लोभ कुछ राजनीतिज्ञों को नैतिकता से विमुख करता है। ऐसे में जिस राजनीति में नैतिकता नहीं होगी वह तात्कालिक रूप से अगर सफल भी हो जाए तो उसका दीर्घकालिक प्रभाव नकारात्मक ही होगा। (केशरीनाथ त्रिपाठी, राज्यपाल - प. बंगाल)।

स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राजनीति में नैतिक मूल्यों का पतन शुरु हो गया। आज देश का राजनीतिक परिवेश पूर्णतः अराजक, भयानक एवं अत्यन्त घिनौना हो गया है।

आजकल लोकतंत्र पर हिंसा, भ्रष्टाचार, वंशवाद, धन्नासेठों का प्रभुत्व, राजनीतिक विरोधियों के प्रति जाहिलाना आचरण, अशिक्षा आदि हावी हो गए हैं और लोकतंत्र का कोई भी जानकार बता देगा कि अगर किसी भी राजकाज की प्रणाली में यह सारी बातें शामिल हो गयीं तो लोकतंत्र की अकाल मृत्यु हो जाती है।

आज राजनीति पर भ्रष्ट, चरित्रहीन, आतंकवादी और बेशर्म लोगों का कब्जा हो गया है। कहाँ गया गाँधी का सदाचार? लोहिया का समाजवाद ? और कहाँ गया शास्त्री जी का त्याग ? लेकिन उन भ्रष्ट, बेईमान, घोटालेबाज, राजनीतिज्ञों को सावधान हो जाना चाहिए जिनसे पूरा देश दुःखी है। आज तक किसी नेता ने जेल की हवा नहीं खायी। जापान व इटली में भ्रष्टाचार के कारण दर्जनों सरकारें गिर गयी और ताइवान के प्रसिद्ध राष्ट्रपति चेन जेल में सड़ रहे हैं, लेकिन हमारे नेता राजा #हरिश्चन्द्र बने हुए हैं। 

वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम के एक सर्वे के अनुसार दुनिया में 43 प्रतिशत लोग राजनीतिज्ञों को बेईमान मानते हैं। दुनिया का नेताओं से भरोसा उठ चुका है और वे इन्हें इस काबिल नहीं मानते हैं कि वे दुनिया की शक्ल बदलने की काबलियत रखते हैं।

#मैकियावेली ने राजनीतिज्ञ की सही व्याख्या की है। उसने लिखा है, "जो व्यक्ति धर्म को अपनी जेब में रखता है, जब चाहता भुना लेता है। नैतिकता से जिसका दूर का भी वास्ता नहीं और धन को जो अपना माई माप समझता है। वह राजनीतिज्ञ बनने का पात्र है, उसे सर्वगुण सम्पन्न राजनीतिज्ञ कहना चाहिए।

संविधान सभा की कार्यवाही के समापन पर अपने भाषण में देश के प्रथम राष्ट्रपति बाबू #राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि 'यदि जिन लोगों को चुना गया, वे योग्य, ईमानदार तथा चरित्र और निष्ठा वाले व्यक्ति हुए तो वे त्रुटिपूर्ण संविधान को सर्वोत्तम बना देंगे। यदि इनमें इसकी कमी हुई तो संविधान देश को नहीं बचा सकता।

देश समस्याओं और प्रश्नों से भरा पड़ा है। भारतीय राजनीति में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई स्तरहीनता का क मात्र कारण राजनीति का नैतिकता के मार्ग से हटकर अनीति, अनाचार, अन्याय के पथ पर अग्रसर होना है। आज राजनीति में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना एवं चिन्तन की आवश्यकता है। 

आरएसएस के #सुदर्शन कहते हैं कि राजनीतिज्ञ वेश्या की तरह हो गये हैं। उनकी निष्ठा-मान्यता कहीं एक जगह नहीं है। वे (वेश्याएं) जैसे पैसे के लिए ग्राहक बदलती हैं, वैसे ही पद, प्रतिष्ठा के लिए नेता अपना विचार- मान्यता-प्रतिबद्धता-निष्ठा बदलते हैं। 

अंत में यही कहूँगा कि- बुलंदी का नशा, सिम्तों का जादू तोड़ देती है / हवा, उड़ते हुऐ पंछी के बाजू तोड़ देती है / सियासी भेड़ियों, थोड़ी बहुत ग़ैरत जरूरी है/ #तवायफ़ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है।

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