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बिहार में चल रही थी जाति आधारित जनगणना - पटना उच्च न्यायालय ने तत्काल प्रभाव से लगाई रोक 

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बिहार में चल रही थी जाति आधारित जनगणना। जातिगत सर्वेक्षण कराने का फैसला जून, 2022 में लिया गया था। सरकार ने राज्य में मकान सर्वे की प्रक्रिया की शुरुआत 7 जनवरी से शुरु की। इस सर्वे की प्रमुख बातें थी  (1) सबसे पहले मकानों की गिनती। (2) सभी मकानों को एक यूनिट नंबर देना। (3) एक मकान में यदि दो परिवार रहते हैं तो उनका अलग-अलग नंबर देना। (4) एक अपार्टमेंट के सभी फ्लैट का अलग-अलग नंबर देना। (5) जाति गणना फार्म पर परिवार के मुखिया का हस्ताक्षर अनिवार्य रूप से लेना। (6) राज्य के बाहर नौकरी करने गए परिवार के सदस्यों की  भी जानकारी लेना। (7) जाति गणना में उपजाति की गिनती नहीं करना। (8) परिवारों की आर्थिक स्थिति की भी जानकारी लेना। (9) प्रखंड में उपलब्ध सुविधाओं की भी जानकारी लेना  जैसे – रेललाइन, तालाब, विद्यालय, डिस्पेंसरी आदि।(10) जनगणना कार्य में लगाए गए कर्मियों को आई कार्ड लगाना, जिस पर बिहार जाति आधारित जनगणना –2022 लिखा होना। 

बिहार में किए जा रहे जातिगत सर्वे को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिस पर 20 जनवरी को सुनवाई हुई थी। इस जनहित याचिका में बिहार में किए जा रहे जातिगत सर्वेक्षण को रद्द करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे जातिगत सर्वे को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट में अपनी अपील दाखिल करनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने पटना उच्य न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसपर वृहस्पतिवार को पटना उच्च न्यायालय से तत्काल प्रभाव से  जातीय जनगणना पर   रोक लगा दी है।

सरकार ने जाति आधारित जनगणना सर्वेक्षण को दो चरणों में पूरा करने का लक्ष्य रखा था। पहला  चरण 7 जनवरी, 2023 से शुरू हुआ जिसमें आवासीय मकानों पर नंबर डाले गए।  यह काम 15 दिन चला। सर्वेक्षण के दूसरे चरण की शुरूआत 15 अप्रैल से शुरू गया है। इस चरण में जिनके घरों को पहली चरण में चिन्हित किया गया है उस घरों में रहने वाले लोगों की जाति, उपजाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि की सूचना एकत्र किया जा रहा था। इस सर्वेक्षण को पूरा करने का लक्ष्य 31 मई, 2023 तक रखा गया था। इस सर्वेक्षण में जाति की गिनती समेत 26 प्रकार की जानकारियां लोगों से ली जा रही थी।

सरकार का मानना है कि जाति आधारित जनगणना कराने से आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण सहित उन्हें आगे बढ़ाया जायेगा। उनका मानना था कि पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के लिए कोर्ट ने सर्वे कराने की बात राज्य सरकार को कही है। राज्य सरकार ने भी जाति आधारित जनगणना करने के लिए विधान सभा और विधान परिषद से प्रस्ताव पारित करने के बाद मंत्रिपरिषद की सहमति ली और जाति आधारित जनगणना शुरू की थी।

बिहार सरकार ने जातीय गणना के लिए जाति क्रमांक (कोड) बनाया है। पहली जाति गणना के लिए  216 कोड तैयार किया था, जिसपर विवाद होने पर उसे संशोधित कर 215 किया है, जिसपर जाति आधारित जनगणना सर्वेक्षण चल रहा था। 15 अप्रैल से पटना जिले में 12 हजार 831 गणना कर्मियों को लगाया गया है, जो 73 लाख 52 हजार 729 लोगों की गणना कर रही है। प्रगणक  द्वारा उत्तरदाताओं से जाति सहित अनिवार्य 17 प्रश्न पूछ जा रहे हैं। प्रत्येक प्रगणक को 150 घरों तक पहुंचने का लक्ष्य सौंपा गया था। इस सर्वेक्षण में 22 जनवरी 2023 से लेकर दूसरे चरण की समाप्ति तक जन्म लिए नवजात बच्चों की गणना नहीं करने का प्रावधान किया गया है।  

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 अप्रैल 2023 को बख्तियारपुर स्थित अपने पैतृक घर से जाति आधारित सर्वेक्षण के दूसरे चरण का शुभारंभ किया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया था कि डाटा का यह काम पूरा होने के बाद, जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट, बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद के पटल पर रखी जाएगी। उसके बाद रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। गणना के दूसरे चरण का कार्य 15 अप्रैल से  राज्य के सभी 261 निकायों एवम 534 प्रखंडों में चल रहा था।

पटना में 13 लाख 69 हजार परिवार की जाति आधारित जनगणना का कार्य किया जाना था। अनुमान लगाया जा रहा था कि यह जनगणना लक्ष्य से पहले 10 मई तक पूरा होने की संभावना थी। जनगणना पूरा होने के बाद पाँच दिन तक छूटे हुए परिवार या उसमें त्रुटि सुधार का कम किया जाना था। 

दूसरे चरण में जिन अनिवार्य 17 प्रश्नों को पूछा जा रहा था उसमें, परिवार के सदस्य का पूरा नाम, पिता/पति का नाम, परिवार के प्रधान से संबंध, आयु (वर्ष में), लिंग, वैवाहिक स्थिति, धर्म, जाति का नाम, शैक्षणिक योग्यता (प्री-प्राइमरी से पोस्ट मास्टर डिग्री), कार्यकलाप [संगठित या असंगठित क्षेत्र में सरकारी से लेकर निजी नौकरी, स्वरोजगार, किसान (कृषि भूमि के मालिक), कृषि मजदूर, निर्माण मजदूर, अन्य मजदूर, कुशल मजदूर, भिखारी, चीर-फाड़ करने वाले, छात्र, गृहिणी से लेकर जिनके पास कोई नहीं है

काम], आवासीय स्थिति (पक्का/फूस का घर, झोपड़ी या बेघर), अस्थायी प्रवासीय स्थिति (कार्य या अध्ययन का स्थान, चाहे राज्य के भीतर या बाहर, देश या विदेश में), कंप्यूटर / लैपटॉप (इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ या उसके बिना), मोटरयान (दोपहिया, तिपहिया, चौपहिया, छह पहिया या अधिक, ट्रैक्टर), कृषि भूमि (0-50 डिसमिल से 5 एकड़ और उससे अधिक का क्षेत्र), आवासीय भूमि (5 डिसमिल से 20 डिसमिल और उससे अधिक भूमि का क्षेत्रफल; एक बहुमंजिला अपार्टमेंट में फ्लैट का मालिक), सभी श्रोतों से मासिक आय (न्यूनतम 0- ₹ 6,000 से लेकर अधिकतम ₹ 50,000 और अधिक) शामिल था।

सरकार ने एप में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की थी कि अगर कोई व्यक्ति दो बार नाम लिखाने का प्रयास करेगा तो एप ऐसे लोगों को चिन्हित कर लेगा। 


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