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पटना /महाकवि सुमित्रानन्दन पंत की जयंती पर साहित्य सम्मेलन

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पटना /महाकवि सुमित्रानन्दन पंत की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में गीति-काव्य ‘चुप-चुप’ का हुआ लोकार्पण, आयोजित विदुषी कवयित्री सुभद्रा वीरेन्द्र के गीति-काव्य में, जीवन के मर्म और संवेदना को मधुर शब्द मिलते हैं। उनके भाव-प्रवण शब्द हृदय को अंतर तक स्पंदित करते हैं। उनके गीतों में महादेवी की पीड़ा दिखाई देती है और पंत का लोक-मंगल भाव लक्षित होता है।यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, हिन्दी काव्य के छायावाद-काल के चार स्तंभों में परिगणित महकवि सुमित्रानन्दन पंत की जयंती पर, स्मृति-शेष कवयित्री डा सुभद्रा वीरेन्द्र के गीति-काव्य ‘चुप-चुप’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि ने कहा कि, उनके गीतों में उस शाश्वत प्रेम और दिव्य समर्पण की अभिव्यक्ति हुई है, जो मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाता है, और जो पीड़ित मन-प्राण को दिव्य शांति और ऊर्जा प्रदान करता करुण राग में भी

एक दिव्य-स्पंदन और प्रेरणा के तत्त्व हैं।जयंती पर महाकवि को स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि पंत जी को हिन्दी साहित्य, ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में जानता है। किन्तु वे संपूर्णता में लोक-मंगल के कवि हैं। उनके संपूर्ण काव्य में प्रकृति और प्रेम के प्रति विशिष्ट-आग्रह तो है ही, जीवन के प्रति देवोपम राग भी दिखाई देता है, जो समष्टि के लिए मंगल-भाव से अनुप्राणित है।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए,सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने लोकार्पित पुस्तक को गीति-साहित्य की एक अनमोल निधि बताया। उन्होंने कहा कि, स्मृति-शेष कवयित्री की अप्रकाशित रचनाओं का प्रकाशन कर उनके विद्वान पति डा. कुमार वीरेन्द्र एक बड़ी क्षति की कवयित्री के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।अपना विचार रखते हुए, प्रो कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि सुभद्रा जी गीत की एकांतिक-साधिका थीं। वो कब लिखती थीं वह मुझे भी तब पता चलता था, जब उनकी इच्छा कुछ सुनाने की होती थी। उनके निधन के पश्चात, उनकी रचनाओं का जब हमने संग्रह किया तब पता चला कि उन्होंने लिख-लिख कर एक पहाड़ खड़ा कर दिया। ‘चुप-चुप’ की रचनाएँ चुप्पी नहीं ओढ़ती अपितु चीख-चीख कर अपनी रचना को खोलती हैI

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