।। जीवित्पुत्रिका व्रत
निर्णय विमर्श:।।
( जीवित्पुत्रिका व्रत-०७/१०/२०२३)
किसी भी विषय के निर्णय में साक्षात् प्रमाणं परतः प्रमाणं ... इस वचन के अनुसार शास्त्र निर्णय में दो प्रमाण अधिमान्य होते हैं । साक्षात् प्रमाण की अपेक्षा परत: प्रमाण न्युनातिन्यून माना जाएगा । जैसे किसी के जन्म के बाद बालक का पिता कौन है , इस निर्णय में माता ही साक्षात् प्रमाण होती है । उसी प्रकार उक्त व्रत के निर्णय के समाधान के लिए साक्षात् प्रमाण ही वरीयान् हो सकता है । इसके संदर्भ में अन्य धर्म शास्त्रों की अपेक्षा साक्षात् प्रमाण के लिए उक्त व्रत कथा की पुस्तक ही समादरणीय होगा । जीवित्पुत्रिका व्रत कथा में किया गया निर्णय- (वर्जनीया प्रयत्नेन सहिताष्टमी) साक्षात् प्रमाण के रुप में समधिगम्य है , अन्य शास्त्रों का निर्णय भी परतः प्रमाण के रुप में स्वीकारणीय हो सकता है ।
जीवपुत्रिका व्रत कथा में सूर्य उदय व्यापिनी अष्टमी व्रत ही उपोष्य है ( उपोष्य चाष्टमी राजन् सप्तमी रहिता शिवा) । सूर्योदय व्यापिनी अष्टमी व्रत करने के लिए अन्य शास्त्र वचन भी प्राप्त होते हैं , जिन वचनों से साक्षात् प्रमाण का पूर्णतः सम्पोषण व समर्थन प्राप्त होता है । तथा ही शास्त्रं प्रमाणं- माध्वाचार्योक्तं- उदये चाऽष्टमी किंचित् सकला नवमी भवेत् । सैवोपोष्या वरस्त्रिभि: पूजयेज्जीवित् पुत्रिकाम् । इस आधार इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत दिनांक ०७ अक्टू २०२३ को ही सर्वमान्य होगा अन्यथा जो मातायें दिनांक ०६ अक्टू २०२३ को सप्तमी युक्त अष्टमी का व्रत करती हैं तो , सप्तमी शेष संयुक्ता या करोति विमोहिता। सप्तजन्म भवेत् वन्ध्या वैधव्यं च पुनः पुनः।। सात जन्मों तक बांझ होती हैं व बार बार विधवा होना पड़ता है । अतः किसी भी परिस्थिति में दिनांक ६ को व्रत नहीं होगा ।
??????????स्वामी श्री अखिलेश्वराचार्य जी महाराज
????श्री धाम वृन्दावन
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