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अर्थशास्त्रियों के बीच इन दिनों भारत को लेकर एक जुमला प्रचलित है

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 [ विकास में तत्काल दूत्र गति लाने की जरूरत  ] 
अर्थशास्त्रियों के बीच इन दिनों भारत को लेकर एक जुमला प्रचलित है। 'विकास की गति अगले 25 वर्षों में तेज करें वरना भारत समृद्ध होने के पहले ही बूढ़ा हो जाएगा।' यानी फिर कभी भी देश समृद्ध होने के बारे में नहीं सोच पाएगा क्योंकि गरीब अर्थव्यवस्था में विकास तो छोड़िए, आधी से ज्यादा वृद्ध आबादी की देखरेख भी एक बड़ी समस्या होगी।

अभी भारत प्रति व्यक्ति आय में दुनिया में 129वें स्थान पर है जबकि मानव-विकास सूचकांक में 132वें पर। सांख्यिकी लाभ का काल वर्ष 2018 से शुरू हुआ, जो अगले 30 साल तक रहेगा। सांख्यिकी के अनुसार भारत के लिए 2020-40 का काल स्वर्णिम है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के 80 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी के कारण सुपोषित नहीं हैं। तकनीकी कौशल भी उस स्तर का नहीं है, जो उसे वैश्विक स्पर्धा में बनाए रखे। औसत विकास दर अगर छह फीसदी की दर पर भी रहे तो अगले 12 साल में प्रतिं व्यक्ति आय दूनी होगी।

आज आय 2250 डॉलर है, जो सन् 2047 में लगभग दस हजार डॉलर होगी। यह आय भारत को मात्र निम्न मध्यम वर्ग में ही रख सकेगी। लिहाजा समृद्ध होने के पहले इस 60 प्रतिशत बूढ़ी आबादी के भरण-पोषण का जिम्मा शायद ही देश उठा पाएगा। एनएफएचएस-5 के अनुसार 15-49 वर्ष की 57 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं। सीआईआई की रिपोर्ट कहती हैं कि देश के कार्यबल के मात्र तीन प्रतिशत ने ही किसी किस्म की औपचारिक वोकेशनल ट्रेनिंग हासिल की है। क्या ऐसी शिक्षा और ट्रेनिंग भारत को 'अमृत काल' में ले जाएगी? कहीं हम मौका चूक तो नहीं रहे हैं? रीता सिंह

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