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मक्के की खेती को आगे बढ़ाए, स्वस्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध RDNEWS

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मक्के की खेती को आगे बढ़ाए, स्वस्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध RDNEWS
मक्के की बढ़ती मांग और ज्यादा उत्पादन के दबाव के कारण आज जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा विकसित (जीएम) मक्का के बारे में चर्चा जोर पकड़ रही है । पर भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसके खतरे को नजरअंदाज किया जा रहा है । जीएम मक्के की किस्मों की कीट प्रतिरोधक क्षमता और विशिष्ट गुणों को बढ़ाने के लिए इंजीनियरिंग की जाती है । ये गुण मक्के के बीजों में न केवल कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं बल्कि कम रसायनों के इस्तेमाल होने से मिट्टी की गुणवत्ता पर भी कम असर डालते हैं । भारत में शुरुआती दौर से ही नॉन जीएम मक्के की किस्में भारतीय कृषि की आधारशिला रही है, लेकिन जीएम मक्के का समर्थन करने वाले लोगों के अनुसार जीएम मक्का, मक्के की  कृषि चुनौतियों से निपटने में अधिक सक्षम है । फिर भी इससे जुड़े खतरे और आशंका बिल्कुल निराधार नहीं हैं ।

जीएम फसलों की खेती से जैव सुरक्षा, पर्यावरण प्रभाव, किसान स्वायत्तता और उपभोक्ता प्राथमिकताओं जैसे अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है । सीमित खेती परीक्षणों के लिए नियामक परमिशन के बावजूद आज भी जीएम मक्के के व्यावसायीकरण को लेकर भारत में कई
जगह पर बहस जारी है। आइये जरा विस्तार से हम भारत में जीएम मक्के से जुडी आशंकाओं का आकलन करते हैं । अभी यह नया है, अध्ययन बाकी: जीएम मक्का के संबंध में बहुत लम्बा अध्ययन नहीं होने के कारण कुछ कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके संभावित पर्यावरणीय दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें आनुवंशिक संदूषण, जैव विविधता की हानि और पारिस्थितिक असंतुलन जैसे खतरे शामिल हैं । नियामक जांच की जरूरत : जीएम मक्का की खपत की सुरक्षा और संभावित स्वास्थ्य प्रभावों के संबंध में अभी और मूल्यांकन और नियामक जांच की आवश्यकता है । यह सीधे उत्पादन नहीं बढ़ाता:  हमें ये समझना होगा कि जीएम मक्का, सीधे उत्पादन को नहीं बढ़ाता है बल्कि यह तात्कालिक कीट संबंधी समस्याओं का समाधान करता है, जिससे थोड़े समय के लिए उपज में वृद्धि होती है । विशेषज्ञों का मानना है कि समय के साथ जीएम फसलें अपनी कीट प्रतिरोधक क्षमता खो देती हैं । कहीं बीटी कपास वाला न हो जाए हाल: जीएम मक्का को लेकर एक बड़ी आशंका यह है कि कही इसका हश्र भी बीटी कपास जैसा न हो जाए । 

बीटी-कॉटन एकमात्र जीएम कपास है जो भारत में व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है । सरकार का इसे अपने देश में बढ़ावा देने का एक बड़ा मकसद कम कीमत में ज्यादा उत्पादन कर किसानों के मुनाफे को बढ़ाना था, लेकिन उल्टे इससे किसानों की अग्रिम लागत बढ़ गई और उनके बजाय कुछ बीज कंपनियों निर्भरता बढ़ गई, जो बीटी-कॉटन का उत्पादन करते हैं । छोटे किसानों के लिए खतरा: यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि वैश्विक स्तर पर भारत में छोटे किसानों की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए यहां इन किसानों के हित को ध्यान में रखना सर्वोपरि है । बीटी-कॉटन की तरह ही जीएम मक्का को अपनाने के बाद इसका पेटेंट और टेक्नोलॉजी कुछ बड़ी कंपनियों के हाथ में सीमित हो सकती है, जिससे भविष्य में किसानों की बीज संप्रभुता, बहुराष्ट्रीय निगमों (मल्टीनेशनल कंपनीज) पर निर्भर हो जाएगी । बाद में इसके कई दूरगामी परिणाम हो सकते है ।

अमेरिकन रिसर्च पर आधारित : जीएम मक्के की किस्मों को संयुक्त राज्य अमेरिका में उपजाए जाने वाले मक्का में कीट संक्रमण की समस्या से निपटने के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है। पर ये जरूरी तो नहीं है कि जो कीट-प्रजाति संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्के के संक्रमण का कारण हैं, वही कीट भारत में भी इसकी फसल के लिए चुनौती हों । भारत में मक्का उत्पादन को प्रभावित करने वाली कीट प्रजातियाँ अलग हो सकती हैं, जिनके नियंत्रण के लिए सरकार को अलग रणनीति बनाने की आवश्यकता है I

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