•   Patna - 800020 (Bihar)
logo

जदयू और राजद का विलय लगभग तय ,

Blog single photo

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 13 दिसंबर  ::

बिहार में महागठबंधन विधानमंडल दल की मंगलवार को हुई बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐलान किया है कि 2025 बिहार विधानसभा का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी ऐलान किया कि मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं हूँ, लेकिन हम सब चाहते हैं बीजेपी को हराना है। उन्होंने यह साफ किया है कि ना तो अब मैं सीएम पद का उम्मीदवार बनना चाहता हूं और  न ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना चाहता हूं।

इस ऐलान से यह स्पष्ट हो गया है कि जदयू  से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के हटते ही जदयू अपना अस्तित्व दिन पर दिन खोते जा रही है। जदयू के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का पार्टी पर या विधायकों पर पकड़ ढीला हो रहा है या कहा जाय कि ढीला हो गया  इसलिए तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आगामी चुनाव राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान करना पड़ा।

देखा जाय तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अचानक से एनडीए का दामन छोड़कर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा कर दी थी। इससे बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया था। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से ऐसी बात कही है, जिससे प्रदेश की राजनीति के गरमाने की संभावना है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि अब हमारे काम को तेजस्वी यादव ही आगे बढ़ाएंगे। इससे राजनीतिक गलियारे में चर्चा  शुरू हो गई है कि आने वाले समय में जनता दल यूनाइटेड- राष्ट्रीय जनता दल का विलय भी लगभग तय हो गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में सियासी समझदार और असरदार नेता माने जाते है और सर्वविदित है कि नीतीश कुमार के दायें हाथ थे आरसीपी सिंह। आरसीपी सिंह नीतीश कुमार पर किसी तरह का आँच नहीं आने देने के लिए खुल्लम खुल्ला दामन थाम रखे थे। इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार के विरोध की स्वर कभी नहीं फूंका और न ही कभी साजिश की। इसी का परिणाम है कि आज तक उन्होंने किसी दूसरी पार्टी का न ही दामन थामा है और न ही नीतीश कुमार का मुखर होकर विरोध किया है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहते हुए आरसीपी सिंह ने पार्टी को मजबूत करने के उद्देश्य से 33 प्रकोष्ठ बनाया था और प्रकोष्ठ बनाने से कार्यकर्ताओं का केवल कद ही नहीं बढ़ा था बल्कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता मजबूत हो रहे थे और आज भी वे लोग आरसीपी सिंह से जुड़े हुए है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज उस हाशिये पर जा रहे है जहां उन्होंने आरसीपी सिंह, समता पार्टी के जॉर्ज फर्नांडिस, रघुनाथ झा, शरद यादव, दिग्विजय सिंह, उपेन्द्र कुशवाहा, पी के सिन्हा को भेजा था।

राजनीतिक समीक्षक का माने तो आरसीपी सिंह यदि बिहार के जिलों का जिलेवार भ्रमण कर नीतीश कुमार का तारीफ कर अपनी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मुद्दा बना सकते है। ऐसा करने से आंतरिक लोकतंत्र की मजबूती बताते हुए नेतृत्व को चुनौती दे सकते है। राजनीतिक समीक्षक का यह भी मानना है कि आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से ही है और एक खास समुदाय के दोनों के वोट बैंक है, आरसीपी सिंह का भी कद कोई छोटा नहीं है।

वर्तमान समय में नीतीश कुमार के दायें आरसीपी सिंह पार्टी से हट गये हैं तो अब केवल बचे बायें हाथ ललन सिंह। ललन सिंह की बगावती तेवर के कारण पार्टी आज एक ऐसी पार्टी का दामन थाम लिया है जिसमें वे अपना और पार्टी का अस्तित्व ढूँढ रहा है। यह कहा जा सकता है कि आरसीपी सिंह को पार्टी छोड़ते ही, पार्टी और नीतीश कुमार अपना वजूद तलाश रहे है।

आज नीतीश कुमार की पार्टी एक बड़ी पार्टी के साथ सरकार चला रही है तो वहीं उस पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह अपनी और पार्टी की अस्तित्व ढूँढते प्रतीत हो रहे हैं, जबकि उन्होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए पार्टी की सदस्यता अभियान चलाया था। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगामी विधानसभा चुनाव राजद के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान जदयू पार्टी की दयनीय स्थिति को दर्शाता है।

दूसरी तरफ आरसीपी सिंह भी चुप बैठे नहीं हैं बल्कि बिहार के विभिन्न जिलों में जाकर अपने सहयोगी कार्यकर्ताओं को एकजुट बनाए रखने में लगे हुए है। 

RDNEWS24.COM

Top